सन्देश

दो शब्द श्री चक्र के बारे में

श्री चक्र पर काफी साहित्य उपलब्ध है | भास्कर राय जैसे महा पंडित एवं दृष्टा ने जो कुछ लिखा है उससे अधिक कुछ लिख भी नहीं सकता | किन्तु कुछ ऐसे प्रश्न हैं जो अनुत्तरित हैं |

  1. श्री चक्र को चक्र क्यों कहा गया , शेष यंत्रो की भांति इसे यन्त्र भी कहा जा सकता था | चक्र केवल उस वास्तु को कहते हैं जिसमे गति हो |
  2. शेष यंत्रो के कोण प्रायः समबाहु होते हैं , यदि विषमबाहु भी होते हैं तो सबका आकार प्रायः सामान होता है जब की श्री चक्र विभिन्न आकार के त्रिकोणो का विशिष्ट संयोजन है |
  3. इसके हर वलय के अलग रंग हैं- क्यों ?
  4. इस ऊर्जा का अक्षुण्ण स्रोत कहा गया है क्यों ?

पूज्यनीय गुरु जी ने श्री विद्या की दीक्षा देने के उपरांत श्री चक्र की शक्तिओ को अधिक से अधिक लोगो को परिचित कराने के लिए आदेश दिया था , तब से मैं उपलब्ध पूर्ण विधि विधान से जाग्रत कर इसे इक्षुक व्यक्तिओ एवं भक्तो को समर्पित कर रहा हूँ| इसे धारण करने वाले लगभग हर व्यक्ति ने इसकी शक्तिओ का अनुभव किया है एवं "माँ" की असीम कृपा उन पर है | अतः इसकी अद्वितीय परा शक्तिओं के बारे में कोई संशय व्यक्त नहीं किया जा सकता किन्तु उपरोक्त प्रश्नो ने ये भी सोचने के लिए बाध्य कर दिया है की श्री चक्र का पूर्ण रहस्य जानने के लिए एक भिन्न दृष्टिकोण की आवश्यकता भी है

श्री चक्र में नौ चक्र हैं एवं इन्हे मानव शरीर स्थित चक्रों के समानांतर कहा गया है | प्रायः शरीर में ७ चक्रो का उल्लेख है किन्तु सिद्ध सिद्धांत में नौ चक्रो का उल्लेख है |

अन्य ग्रन्थ सिद्ध सिद्धांत श्री चक्र
मूलाधार चक्र आधार चक्र त्रैलोक्य मोहन चक्र
स्वाधिष्ठान चक्र स्वधिष्ठान चक्र सर्वआशापरिपूरक चक्र
मणिपूरक चक्र नाभि चक्र सर्व संक्षोभण चक्र
अनाहत चक्र ह्रदय चक्र सर्व सौभाग्य दायक चक्र
विशुद्ध चक्र कण्ठ चक्र सर्वार्थ साधक चक्र
प्रज्ञा चक्र तालु चक्र सर्व रक्षाकर चक्र
सहस्त्रार चक्र ब्रह्म रंध्र चक्र सर्व रोगहर चक्र
आकाश चक्र सर्व सिद्धिप्रद चक्र
सर्वानन्दमय चक्र

कुछ ग्रंथो में त्रैलोक्य मोहन चक्र को सहस्त्रार एवं त्रिवलय को वैन्दव स्थान अर्थात सहस्त्रार का चंद्र स्थान कहा गया है शेष चक्रो की तुलना नहीं की गयी | कुछ ग्रंथो ने बिंदु को सहस्त्रार कहा है | यदि इन दोनों कथनो को ठीक समझा जाये तो आकृति कुछ इस प्रकार हो जाती है |

ये आकृति भगवन शिव के डमरू की है इसकी नाद एवं लय के प्रभाव से हर अध्ययनशील व्यक्ति परिचित है| इस डमरू की नाद ने कई बार सृष्टि में संहार, परिवर्तन एवं सृजन किया है |

क्या ये सभी क्षमताएं श्री चक्र के भी निहित हैं ? क्या इसी कारण मनिषिओं ने श्री चक्र को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति एवं संहार का कारन माना है ? श्री चक्र के पूजन में पालन एवं संहार क्रम दोनों ही होते हैं | क्या पंचदशी की नाद एवं शिव डमरू की नाद में भी सामंजस्य है ? संभावना है अर्थात जितनी सृजन एवं संहार की क्षमता शिव वाद्य में है उतनी ही श्री चक्र में, पंचदशी में एवं शरीर में स्थित चक्रो में हैं | श्री चक्र की संरचना चतुष्कोण , त्रिकोण , वलय एवं कमल सैलून के वलयों के संयोजन से बनी संरचना है | शरीर में निहित चक्र भी कमल दलों, त्रिकोण आदि की रचना बताई गयी है | ये चक्र तीव्र गति से घूमते रहते हैं | थियस फिजिकल सोसायटी द्वारा प्रकाशित पुस्तकों में एवं चीनी ग्रंथो में लेखकों का कहना है की ये केवल प्रकाश रेखाओ की संरचना है | तीव्र गति से घूमने के कारन ये त्रिकोण एवं कमल दल की आकृति बना लेते हैं | क्रियात्मक प्रयोग करने से इन पुस्तकों का कथन सत्यापित नहीं हो पाता इसका उल्टा अवश्य होता है | यदि इस षड चक्रो की आकृति को तीव्र गति से घुमाया जाये तो रेखाओं का समूह दीखता है | षड चक्र बहुत तीव्र गति से घूमते रहते हैं , ग्रंथो के अनुसार इनकी अनुलोम गति ऊर्जा को वातावरण से सोख कर शरीर को देती है एवं जब ये विलोम गति से घूमते हैं तो शरीर की ऊर्जा को बहार फेकते हैं| क्या ये क्रिया श्री चक्र में भी होती है ? क्या इसका पूजन , पूजन की विधि एवं पंचदशी अथवा षोडशी का जाप भी ऐसी ऊर्जा उत्पन्न करता है ?

श्री चक्र के सभी ९ चक्रो के विभिन्न नाम हैं | इन नामो के अनुरूप ही उनके गुण एवं क्षमता भी है - किन्तु कैसे ?

सम्पूर्ण श्री चक्र का मंत्र पंचदशी अथवा षोडशी है किन्तु अलग अलग चक्रो के अलग अलग मंत्र भी हैं| इनका उल्लेख प्रायः नहीं मिलता | मेरी अल्प बुद्धि एवं अध्ययन से जो समझ सका हूँ- लिख रहा हूँ| मैंने इनका प्रयोग किया है और अनुकूल प्रतिष्ठा भी प्राप्त हुई है |

  1. प्रथम चक्र भूपुर - त्रैलोक्यमोहन चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुरा , चक्र की मुद्रा है सर्व संक्षोभिणी मुद्रा एवं मंत्र है - अं अं सौभ
  2. द्वितीय आवरण - सर्व आशापरिपूरक चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुरेशी, चक्र की मुद्रा है सर्वविद्रविणी मुद्रा एवं मंत्र है - ाएँ क्लीं सौह
  3. तृतीय आवरण - सर्व संक्षोभण चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुर सुंदरी , चक्र की मुद्रा है सर्वाकर्षिणी मुद्रा एवं मंत्र है -
  4. चतुर्थ आवरण - सर्वसौभाग्यदायक चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुरवासिनी , चक्र की मुद्रा है सर्ववशङ्करि मुद्रा एवं मंत्र है - हैं
  5. पंचम आवरण - सर्वार्थसाधक चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुराश्री, चक्र की मुद्रा है उन्मादिनी मुद्रा एवं मंत्र है
  6. षष्ट आवरण - सर्वरक्षाकर चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुरमालिनी, चक्र की मुद्रा है महाकुश मुद्रा एवं मंत्र है
  7. सप्तम आवरण - सर्वरोगहर चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुरासिद्धि, चक्र की मुद्रा है खेचरी मुद्रा एवं मंत्र है
  8. अष्टम आवरण - सर्वसिद्धिप्रद चक्र , इस चक्र की शक्ति है त्रिपुराम्बा , चक्र की मुद्रा है बीज मुद्रा एवं मंत्र है
  9. नवम आवरण - सर्वानन्दमय चक्र , इस चक्र की शक्ति है श्री ललिता - महात्रिपुरसुन्दरी , चक्र की मुद्रा है योनि मुद्रा एवं मंत्र है पंचदशी अथवा षोडशी

सम्पूर्ण यंत्र का पूजन पंचदशी अथवा षोडशी से किया जाता है किन्तु यदि रोगो से पीछा छुड़ाना है तो पंचदशी को सर्वरोग हर चक्र के मंत्र अनुलोम - विलोम से सम्पुटित करके करें जैसे ह्रीं श्रीं सौ: क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: श्रीं ह्रीं | सम्मोहन के लिए अं आं सौ: क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौह आं अं आदि आदि | साथ ही चक्र की विशिष्ट मुद्रा भी अवश्य बनाएं | जाप यदि दी हुई मुद्रा प्रदर्शित करते हुए करें तो सुगमता से सफलता प्राप्त होती है

प्राक्कथन

प्रस्तुत दुर्गा सप्तशती के विधिपूर्वक पाठ से बढकर माँ के आशीर्वाद को प्राप्त करने का और कोई दूसरा मार्ग नहीं हो सकता है | श्री दुर्गा के सप्तसती के सम्पूर्ण पाठ करने में अधिक समय लगता है किन्तु यदि यही पाठ बीज मंत्रो की सहायता से किया जाये तो सम्पूर्ण पाठ दो घंटे में किया जा सकता है | "दुर्गा सप्तशती बीज मंत्र " ये पुस्तक मुझे बहुत वर्षो पहले पूज्य गुरूदेव स्वामी प्रकाशानंद जी , हरिद्वार ने प्रदान की थी | फिर ऐसी ही कई पुस्तके और भी प्राप्त हुई है | सभी पुस्तकों के बीज मंत्रो में अत्यधिक असमानता थी , इन बीज मंत्रो असमानताओं को दूर करने के लिए माँ जगदम्बा ने श्री प्रभात को प्रेरित किया , तत्पश्चात उन्होंने अपने सहयोगी श्री संदीप त्रिपाठी की मदद से इस कार्य को अत्यधिक खोजबीन करके माता की कृपा से पूर्ण किया | माँ जगदम्बा के आशीर्वाद से ही उन्हें मूल प्रतिलिपि और उन्होंने माँ के आशीर्वाद से इस पुस्तक को त्रुटिहीन रूप में माँ के भक्तो को उपलब्ध करने की बीडा उठया |

श्री प्रभात जी व उनके सहयोगी संदीप त्रिपाठी के अकथक प्रयासों के कारण ही ये पुस्तक आपके हाथ में है | ये अमूल्य निधि है चाहकर भी आप इसका मूल्य नहीं दे सकते क्योकि माँ की कृपा का कोई मूल्य नहीं होता | ये पुस्तके माँ की प्रेरणा से ही छपी है , उनकी प्रेरणा से ही आप तक पहुचेगीं एवम उसका पाठ भी उनकी प्रेरणा से ही करेंगे तब स्वयं उनका आशीर्वाद आपको प्राप्त होगा |

अविनाश चंद्र धीर
08953662950 , 09415511949

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