गुरु जी - एक परिचय

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में २१ सितम्बर 1845 को जन्मे गुरुजी का नाम 'अविनाश' था |आपके पिता का नाम स्व श्री लाजपतराय धीर था , तथा माता का नाम स्व श्रीमती कृष्णा कुमारी था आप जीवन के प्रारम्भ कल से ही अपने को स्वतंत्र होने का परिचय देते हैं आपकी प्रारंभिक शिक्षा बाराबंकी में हुई तत्पश्चात बी एस सी में आपने सन १९६३ में लखनऊ विश्वविद्यालय में दाखिला लिया | सन १९६७ में जिओलॉजी ( भूगर्भ विज्ञान ) से लखनऊ विश्वविद्यालय से डिग्री हासिल की |

शुरू से ही आपका "आदि शक्ति जगदम्बा" के लिए रुझान था | आदि शक्ति जगदम्बा के अस्तित्व ने स्वतः समस्त रहस्य जे रस्ते आपके लिए खोल दिए थे | बिना गुरु के खोज संभव नहीं थी इस कारण साधना कल के प्रारम्भ में अपने श्री गणेश जी को अपना गुरु बना कर "आदि शक्ति जगदम्बा" की उपासना प्रारम्भ की | गुरु गणेश स्वयं ही माँ का रहस्य उनके सम्मुख रखने के लिए आपसे साधना का प्रारम्भ करवाया |

सन १९७८ में "पराशक्ति माँ " की अपार कृपा से आपको परमपूज्य श्री रामानंद जी, ओम्कारेश्वर के सान्निध्य में भेजा | वहां महाराज जी ने आपको सान्निध्य में रखकर ये निर्देशन दिया की तुम दक्षिणामूर्ति शिव की कृपा प्राप्त कर व उनके आदेशानुसार निश्चित शुभ मुहूर्त में श्री विद्या की साधना शुरू करो |

आप लगभग दो वर्षो तक उनके निर्देशन में साधना करते रहे | आपकी लगन को देखकर "माँ" की कृपा के फलस्वरूप श्री रामानंद ओमकारेशवर ने प्रारंभिक शिक्षा प्रधान की| निश्चित साधना के पश्चात् अमरकंटक में आगे के लिए पुनः दीक्षित किया गया |

अब साधना के पश्चात शक्ति के तमाम अत्यंत गूढ़ रहस्य "माँ " के आशीर्वाद से स्पष्ट होने लगे | इन रहस्यों को आप द्वारा प्रयोगो से वैज्ञानिकता की कसौटी पर परखा गया | सभी में ईशकृपा परमावश्यक है | जब माँ किसी पर कृपा करती हैं तो उसे विवेक देकर आत्मानुभूति करा देती हैं इसके लिए जिस किसी आत्मा को वरण करती है वे उसी को प्राप्त होती है तथा उसी के सन्मुख अपना स्वरुप प्रकट करती है | अब बहुत से रहस्य अनसुलझे नहीं रह गये थे |

साधना के दौरान आपका ज्योतिष विद्या व ज्योतिष से सम्बंधित रहस्यों का अपार ज्ञान "माँ" के आशीर्वाद से व अध्ययन से आ गया था | यही आपकी जीविका का साधन भी बना | आपके ज्योतिष ज्ञान से आपके पास आने वालो के दिशा - निर्देशन प्राप्त होने लगा तथा आप द्वारा बताई गयी विधि से सभी की समस्याओ का निराकरण होने लगा | ये माँ का आशीर्वाद ही है की आपके पास से कोई निराश नहीं लौटा |

आपका विवाह श्रीमती सुलक्षणा जी से हुआ था | हम सभी उनको प्रेम से माता जी कहते थे | वह भी मुझ पर अपार स्नेह रखती थी और सदैव पुत्रवत व्यव्हार करती थी | सन २००३ में पूज्य माता जी को कैंसर हो गया | गुरु जी ने उनको स्वस्थ रखने की अत्यंत कोशिश की, परन्तु आदि शक्ति को कुछ और ही मंजूर था | दिनांक १० मई २००७ को काल के क्रूर हाथो ने उन्हें हमसे दूर कर दिया | अब पूज्य गुरु जी ने इस कैंसर के विरु (मन्त्र शांति से यु ( करने का निर्णय किया | विषय पर आप लगातार शोध कर रहे हैं | इसके अत्यधिक् सार्थक परिणाम भी प्राप्त हुए हैं कई लोगो के कुंडली के कैंसर की स्थिति को देखकर मंत्र व हवन माध्यम से समस्या का ९० प्रतिशत तक निदान कर दिया है | ये सब "माँ " की असीम अनुकम्पा का ही फल है | लेकिन अभी तो बहुत से प्रयोग बाकि हैं और गुरु जी इस विषय पर लगातार काम करते चले जा रहे हैं

आपका ज्योतिष शास्त्र व वास्तुशास्त्र व दोषनिवारन पर ज्ञान अगाध है | समस्त का शुभ हो | प्रत्येक घर में आदिशक्ति माँ जगदम्बा का आशीर्वाद हो ऐसी आपकी इच्छा सदैव की रहती है | इस कारन आपके द्वारा माँ से सम्बंधित पुस्तक को प्रकाशित करने का आदेश दिया गया | इन सभी कार्य का सफल होना माँ का आशीर्वाद व गुरु की कृपा ही है | हमें तो निमित्त मात्रा बनाया गया |